हैल्लो दोस्तों कैसे है आप लोग आशा करता हु ठीक होंगे, आज के आर्टिकल में हम पढ़ने वाले है, Mirza Ghalib Shayari Hindi, मिर्ज़ा ग़ालिब की ग़ज़ल जैसे की आपको पता है दोस्तों की मिर्ज़ा ग़ालिब उर्दू और फ़ारसी भाषा के महान शायर थे, जिन्होंने पूरी दुनिया में अपने कलम का छाप छोर गए, ज़िन्दगी से हम अपनी कुछ उधार नही लेते, कफ़न भी लेते है तो अपनी ज़िन्दगी देकर, ग़ालिब ने जिस गजल को छुए उस गजल को हमेशा के लिए अमर कर दिए, मिर्ज़ा ग़ालिब पर एक से एक बेहतरीन शायरी गजल निचे पोस्ट में लिखा हुआ है, निचे पोस्ट पर जाकर पढ़े और अपने दोस्तों को भी भेजिए, धन्यवाद
Mirza Ghalib Shayari Hindi
Mirza Ghalib Shayari Hindi
ज़िन्दगी से हम अपनी कुछ उधार नही लेते !!
कफ़न भी लेते है तो अपनी ज़िन्दगी देकर !!
उनको देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक !!
वो समझते हैं के बीमार का हाल अच्छा है !!
इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब’ !!
कि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे !!
हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन !!
दिल के ख़ुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़याल अच्छा है !!
इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा !!
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं !!
हम न बदलेंगे वक़्त की रफ़्तार के साथ !!
जब भी मिलेंगे अंदाज पुराना होगा !!
ओहदे से मद्ह-ए-नाज़ के बाहर न आ सका !!
गर इक अदा हो तो उसे अपनी क़ज़ा कहूँ !!
पीने दे शराब मस्जिद में बैठ के !!
या वो जगह बता जहाँ खुदा नहीं है !!
और दिल वो काफिर !!
जो मुझ में रह कर भी तेरा हो गया !!
तेरे हुस्न को परदे की ज़रुरत नहीं है “ग़ालिब” !!
कौन होश में रहता है तुझे देखने के बाद !!
ख्वाहिशों का काफिला भी अजीब ही है “ग़ालिब” !!
अक्सर वहीँ से गुज़रता है जहाँ रास्ता नहीं होता !!
आया है मुझे बेकशी इश्क़ पे रोना ग़ालिब !!
किस का घर जलाएगा सैलाब भला मेरे बाद !!
बस कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना !!
आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसाँ होना !!
इब्न-ए-मरयम हुआ करे कोई !!
मेरे दुख की दवा करे कोई !!
न हुई गर मिरे मरने से तसल्ली न सही !!
इम्तिहाँ और भी बाक़ी हो तो ये भी न सही !!
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Mirza Ghalib Shayari
ख़ार ख़ार-ए-अलम-ए-हसरत-ए-दीदार तो है !!
शौक़ गुल-चीन-ए-गुलिस्तान-ए-तसल्ली न सही !!
मैं बुलाता तो हूँ उस को मगर ऐ जज़्बा-ए-दिल !!
उस पे बन जाए कुछ ऐसी कि बिन आए न बने !!
की वफ़ा हम से, तो गैर उसको जफ़ा कहते हैं !!
होती आई है, कि अच्छो को बुरा कहते हैं !!
हम भी दुश्मन तो नहीं हैं अपने !!
ग़ैर को तुझ से मोहब्बत ही सही !!
कुछ तो तन्हाई की रातों में सहारा होता !!
तुम न होते न सही ज़िक्र तुम्हारा होता !!
खुद को मनवाने का मुझको भी हुनर आता है !!
मैं वह कतरा हूं समंदर मेरे घर आता है !!
तू मिला है तो ये अहसास हुआ है मुझको !!
ये मेरी उम्र मोहब्बत के लिए थोड़ी है !!
वो जो काँटों का राज़दार नहीं !!
फ़स्ल-ए-गुल का भी पास-दार नहीं !!
फ़िक्र-ए-दुनिया में सर खपाता हूँ !!
मैं कहाँ और ये वबाल कहाँ !!
मैं नादान था जो वफ़ा को तलाश करता रहा ग़ालिब !!
यह न सोचा के एक दिन अपनी साँस भी बेवफा हो जाएगी !!
हम तो फना हो गए उसकी आंखे देखकर गालिब !!
न जाने वो आइना कैसे देखते होंगे !!
खैरात में मिली ख़ुशी मुझे अच्छी नहीं लगती ग़ालिब !!
मैं अपने दुखों में रहता हु नवावो की तरह !!
इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया !!
वर्ना हम भी आदमी थे काम के !!
बे-वजह नहीं रोता इश्क़ में कोई ग़ालिब !!
जिसे खुद से बढ़ कर चाहो वो रूलाता ज़रूर है !!
इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना !!
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना !!
मिर्ज़ा ग़ालिब की दर्द भरी शायरी
आईना देख अपना सा मुँह ले के रह गए !!
साहब को दिल न देने पे कितना ग़ुरूर था !!
लफ़्ज़ों की तरतीब मुझे बांधनी नहीं आती “ग़ालिब !!
हम तुम को याद करते हैं सीधी सी बात है !!
मौत का एक दिन मुअय्यन है !!
नींद क्यूँ रात भर नहीं आती !!
कोई उम्मीद बर नहीं आती !!
कोई सूरत नज़र नहीं आती !!
लोग कहते है दर्द है मेरे दिल में !!
और हम थक गए मुस्कुराते मुस्कुराते !!
उम्र भर देखा किये, मरने की राह !!
मर गये पर, देखिये, दिखलाएँ क्या !!
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का !!
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले !!
क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हां !!
रंग लावेगी हमारी फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन !!
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक !!
कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक !!
दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ !!
मैं न अच्छा हुआ बुरा न हुआ !!
दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई !!
दोनों को इक अदा में रज़ामंद कर गई !!
इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना !!
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना !!
इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब !!
कि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे !!
दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है !!
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है !!
काबा किस मुँह से जाओगे ‘ग़ालिब’ !!
शर्म तुम को मगर नहीं आती !!
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ग़ालिब की प्रेरणादायक शायरी
रंज से ख़ूगर हुआ इंसाँ तो मिट जाता है रंज !!
मुश्किलें मुझ पर पड़ीं इतनी कि आसाँ हो गईं !!
तुम वो भी महसूस कर लिया करो ना !!
जो हम तुमसे कह नहीं पाते हैं !!
हमारे शहर में गर्मी का यह आलम है ग़ालिब !!
कपड़ा धोते ही सूख जाता है पहनते ही भीग जाता है !!
वो जो काँटों का राज़दार नहीं !!
फ़स्ल-ए-गुल का भी पास-दार नहीं !!
उम्र भर देखा किये, मरने की राह !!
मर गये पर, देखिये, दिखलाएँ क्या !!
कुछ तो तन्हाई की रातों में सहारा होता !!
तुम न होते न सही ज़िक्र तुम्हारा होता !!
गुजर रहा हूँ यहाँ से भी गुजर जाउँग !!
मैं वक्त हूँ कहीं ठहरा तो मर जाउँगा !!
फ़िक्र-ए-दुनिया में सर खपाता हूँ !!
मैं कहाँ और ये वबाल कहाँ !!
हम जो सबका दिल रखते हैं !!
सुनो, हम भी एक दिल रखते हैं !!
कोई उम्मीद बर नहीं आती !!
कोई सूरत नज़र नहीं आती !!
आईना देख अपना सा मुँह ले के रह गए !!
साहब को दिल न देने पे कितना ग़ुरूर था !!
पीने दे शराब मस्जिद में बैठ के !!
या वो जगह बता जहां खुदा नहीं है !!
की वफ़ा हम से, तो गैर उसको जफ़ा कहते हैं !!
होती आई है, कि अच्छो को बुरा कहते हैं !!
दुख देकर सवाल करते हो !!
तुम भी गालिब कमाल करते हो !!
मुझे कहती है तेरे साथ रहूँगी सदा ग़ालिब !!
बहुत प्यार करती है मुझसे उदासी मेरी !!
Mirza Ghalib Shayari on Life in Hindi
हम जो सबका दिल रखते हैं !!
सुनो, हम भी एक दिल रखते हैं !!
उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़ !!
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है !!
पियूँ शराब अगर ख़ुम भी देख लूँ दो चार !!
ये शीशा-ओ-क़दह-ओ-कूज़ा-ओ-सुबू क्या है !!
रही न ताक़त-ए-गुफ़्तार और अगर हो भी !!
तो किस उम्मीद पे कहिये के आरज़ू क्या है !!
नज़र लगे न कहीं उसके दस्त-ओ-बाज़ू को !!
ये लोग क्यूँ मेरे ज़ख़्मे जिगर को देखते हैं !!
वाइज़ तेरी दुआओं में असर हो तो मस्जिद को हिलाके देख !!
नहीं तो दो घूंट पी और मस्जिद को हिलता देख !!
हाथों की लकीरों पे मत जा ऐ गालिब !!
नसीब उनके भी होते हैं जिनके हाथ नहीं होते !!
दर्द जब दिल में हो तो दवा कीजिए !!
दिल ही जब दर्द हो तो क्या कीजिए !!
न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता !!
डुबोया मुझ को होने ने न होता मैं तो क्या होता !!
हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर बहुत अच्छे !!
कहते हैं कि ‘ग़ालिब’ का है अंदाज़-ए-बयाँ और !!
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले !!
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले !!
कितना ख़ौफ होता है शाम के अंधेरों में !!
पूछ उन परिंदों से जिनके घर नहीं होते !!
हुआ जब गम से यूँ बेहिश तो गम क्या सर के कटने का !!
ना होता गर जुदा तन से तो जहानु पर धरा होता !!
तुम न आए तो क्या सहर न हुई !!
हाँ मगर चैन से बसर न हुई !!
मेरा नाला सुना ज़माने ने !!
एक तुम हो जिसे ख़बर न हुई !!
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Ghalib Shayari on Love
बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे !!
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मिरे आगे !!
बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना !!
आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसाँ होना !!
कोई मेरे दिल से पूछे तिरे तीर-ए-नीम-कश को !!
ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता !!
रेख़्ते के तुम्हीं उस्ताद नहीं हो ‘ग़ालिब’ !!
कहते हैं अगले ज़माने में कोई ‘मीर’ भी था !!
तेरे वादे पर जिये हम, तो यह जान, झूठ जाना !!
कि ख़ुशी से मर न जाते, अगर एतबार होता !!
हुई मुद्दत कि ‘ग़ालिब’ मर गया पर याद आता है !!
वो हर इक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता !!
न शोले में ये करिश्मा न बर्क़ में ये अदा !!
कोई बताओ कि वो शोखे-तुंदख़ू क्या है !!
चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन !!
हमारी ज़ेब को अब हाजत-ए-रफ़ू क्या है !!
रंज से ख़ूगर हुआ इंसाँ तो मिट जाता है रंज !!
मुश्किलें मुझ पर पड़ीं इतनी कि आसाँ हो गईं !!
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता !!
अगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होता !!
ये रश्क है कि वो होता है हमसुख़न हमसे !!
वरना ख़ौफ़-ए-बदामोज़ी-ए-अदू क्या है !!
बना है शह का मुसाहिब, फिरे है इतराता !!
वगर्ना शहर में “ग़ालिब” की आबरू क्या है !!
तेरे ज़वाहिरे तर्फ़े कुल को क्या देखें !!
हम औजे तअले लाल-ओ-गुहर को देखते हैं !!
कहाँ मय-ख़ाने का दरवाज़ा ‘ग़ालिब’ और कहाँ वाइज़ !!
पर इतना जानते हैं कल वो जाता था कि हम निकले !!
निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन !!
बहुत बे-आबरू हो कर तिरे कूचे से हम निकले !!
Mirza Ghalib Shayari on Friendship
ये हम जो हिज्र में दीवार-ओ-दर को देखते हैं !!
कभी सबा को, कभी नामाबर को देखते हैं !!
वो चीज़ जिसके लिये हमको हो बहिश्त अज़ीज़ !!
सिवाए बादा-ए-गुल्फ़ाम-ए-मुश्कबू क्या है !!
हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है !!
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है !!
वो आए घर में हमारे, खुदा की क़ुदरत हैं !!
कभी हम उनको, कभी अपने घर को देखते हैं !!
हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है !!
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है !!
हुई मुद्दत कि ‘ग़ालिब’ मर गया पर याद आता है !!
वो हर इक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता !!
बिजली इक कौंध गयी आँखों के आगे तो क्या !!
बात करते कि मैं लब तश्न-ए-तक़रीर भी था !!
यही है आज़माना तो सताना किसको कहते हैं !!
अदू के हो लिए जब तुम तो मेरा इम्तहां क्यों हो !!
हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन !!
दिल के खुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़याल अच्छा है !!
इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब !!
कि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे !!
तेरे हुस्न को पर्दे की ज़रुरत नहीं है ग़ालिब !!
कौन होश में रहता है तुझे देखने के बाद !!
दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई !!
दोनों को इक अदा में रज़ामंद कर गई !!
हैरान हूँ तुझे मस्ज़िद में देखकर ग़ालिब !!
ऐसा क्या हुआ जो तुझे खुदा याद आ गया !!
मत पूछ की क्या हाल है मेरा तेरे पीछे !!
तू देख की क्या रंग है तेरा मेरे आगे !!
किसी की क्या मजाल थी जो कि हमें खरीद सकता !!
हम तो खुद ही बिक गये खरीददार देखकर !!
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Mirza Ghalib Shayari on Zindagi
हर एक बात पे कहते हो तुम की तू क्या है !!
तुम्ही कहो ये अंदाज़-ए -गुफ़्तगू क्या है !!
आता है कौन-कौन तेरे गम को बाँटने ग़ालिब !!
तू अपनी मौत की अफवाह उड़ा के तो देख !!
न था कुछ तो खुदा था, कुछ न होता तो खुदा होता !!
डुबोया मुझको होनी ने, न होता मैं तो क्या होता !!
तेरी दुआओं में असर हो तो मस्जिद को हिला के दिखा !!
नहीं तो दो घूँट पी और मस्जिद को हिलता देख !!
नादान हो जो कहते हो क्यों जीते हैं “ग़ालिब !!
किस्मत मैं है मरने की तमन्ना किसी दिन और !!
रहने दे मुझे इस अँधेरे में ग़ालिब !!
कम्बख्त रौशनी में अपनों के असली चेहरे नज़र आ जाते है !!
वो मिले भी तो खुदा के दरबार में ग़ालिब !!
अब तू ही बता मोहोब्बत करते या इबादत !!
हाथों की लकीरों पर मत जा ए ग़ालिब !!
नसीब उनके भी होते हैं जिनके हाथ नहीं होता !!
ना कर इतना गौरव अपने नशे पे शराब !!
तुझसे भी ज्यादा नशा रखती है आँखें किसी की !!
इश्क से तबियत ने जीस्त का मजा पाया !!
दर्द की दवा पाई दर्द बे-दवा पाया !!
इस सादगी पे कौन न मर जाए खुदा !!
लड़ते हैं और हाथ मे तलवार भी नहीं !!
इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना !!
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना !!
खुदा के वास्ते पर्दा न रुख्सार से उठा ज़ालिम !!
कहीं ऐसा न हो यहाँ भी वही काफिर सनम निकले !!
इतना दर्द न दिया कर ए ज़िन्दगी !!
इश्क़ किया है कोई क़त्ल नहीं !!
शक से भी अक्सर खत्म हो जाते है रिश्ते !!
कसूर हर बार गलतियों का नहीं होता !!
Mirza Ghalib Shayari Hindi
बिखरा वजूद, टूटे ख़्वाब, सुलगती तन्हाईयाँ !!
कितने हसीन तोहफे दे जाती है ये मोहब्बत !!
मुहब्बत में उनकी अना का पास रखते हैं.
हम जानकर अक्सर उन्हें नाराज़ रखते हैं !!
नज़र लगे न कहीं उसके दस्त-ओ-बाज़ू को !!
ये लोग क्यूँ मेरे ज़ख़्मे जिगर को देखते हैं !!
अब तो आ जाओ साईं बहुत उदास है दिल !!
सांसों की तरह जरूरी है, अब दीदार तेरा !!
खुद को मनवाने का मुझको भी हुनर आता है !!
मैं वह कतरा हूं समंदर मेरे घर आता है !!
लोग कहते है दर्द है मेरे दिल में !!
और हम थक गए मुस्कुराते मुस्कुराते !!
यों ही उदास है दिल बेकरार थोड़ी है !!
मुझे किसी का कोई इंतज़ार थोड़ी है !!
वो रास्ते जिन पे कोई सिलवट ना पड़ सकी !!
उन रास्तों को मोड़ के सिरहाने रख लिया !!
तू मिला है तो ये अहसास हुआ है मुझको !!
ये मेरी उम्र मोहब्बत के लिए थोड़ी है !!
जब ख़ुशी मिली तो कई दर्द मुझसे रूठ गए !!
दुआ करो कि मैं फिर से उदास हो जाऊं !!
ज़िन्दगी से हम अपनी कुछ उधार नही लेते !!
कफ़न भी लेते है तो अपनी ज़िन्दगी देकर !!
आप कितने भी अच्छे इंसान क्यों न हो आप !!
किसी न किसी की कहानी में बुरे ज़रूर होते है !!
मैं उदास बस्ती का अकेला वारिस !!
उदास शख्सियत पहचान मेरी !!
जरा सी छेद क्या हुई मेरे जेब में !!
सिक्कों से ज्यादा तो रिश्तेदार गिर गए !!
है एक तीर जिस में दोनों छिदे पड़े हैं वो !!
दिन गए कि अपना दिल से जिगर जुदा था !!
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मिर्ज़ा ग़ालिब की ग़ज़ल
फिर उसी बेवफा पे मरते हैं !!
फिर वही ज़िन्दगी हमारी है !!
बेखुदी बेसबब नहीं ‘ग़ालिब’ !!
कुछ तो है जिस की पर्दादारी है !!
दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई !!
दोनों को एक अदा में रजामंद कर गई !!
मारा ज़माने ने ‘ग़ालिब’ तुम को !!
वो वलवले कहाँ, वो जवानी किधर गई !!
कुछ इस तरह से मैंने !!
जिंदगी को आसां कर लिया ग़ालिब !!
किसी से माफ़ी मांग ली !!
तो किसी को माफ़ कर दिया !!
इश्क़ मुझको नहीं वेहशत ही सही !!
मेरी वेहशत तेरी शोहरत ही सही !!
काटा कीजिए न तालुक हम से !!
कुछ नहीं है तो अदावत ही सही !!
तुम न आए तो क्या सहर न हुई !!
हाँ मगर चैन से बसर न हुई !!
मेरा नाला सुना ज़माने ने !!
एक तुम हो जिसे ख़बर न हुई !!
बर्दाशत नहीं तुम्हें किसी और के साथ देखना !!
बात शक की नहीं हक की है !!
कहते हैं जीते हैं उम्मीद पर लोग !!
हमको जीने की भी उम्मीद नहीं !!
उनकी एक नजर को तरसते रहेंगे !!
ये आंसू हर बार बरसते रहेंगे !!
कभी बीते थे कुछ पल उनके साथ !!
बस यही सोच कर हसते रहेंगे !!
न वो आ सके न हम कभी जा सके !!
न दर्द दिल का किसीको सुना सके !!
बस खामोश बैठे है उसकी यादों में !!
न उसने याद किया न हम उसे भुला सके !!
नहीं करनी अब मोहब्बत किसी से !!
एक बार करके ही पछता लिए हम !!
उसी ने दे दिए हमें जिंदगी के सारे गम !!
ये चंद दिन की दुनिया है ग़ालिब !!
यहां पलकों पर बिठाया जाता है !!
नज़रो से गिराने के लिए !!
तू तो वो जालिम है !!
जो दिल में रह कर भी !!
मेरा न बन सका !!
लगा था तीर तब इतना दर्द न हुआ ग़ालिब !!
ज़ख्म का एहसास तब हुआ !!
जब कमान देखी अपनों के हाथ में !!
तुम अपने शिकवे की बातें !!
न खोद खोद के पूछो !!
हज़र करो मिरे दिल से !!
कि उस में आग दबी है !!
तोड़ा कुछ इस अदा से !!
तालुक़ उस ने “ग़ालिब” !!
के सारी उम्र अपना क़सूर ढूँढ़ते रहे !!
हमारे शहर में गर्मी का यह आलम है ग़ालिब !!
कपड़ा धोते ही सूख जाता है !!
पहनते ही भीग जाता है !!
हक़ीक़त ना सही तुम !!
ख़्वाब बन कर मिला करो !!
भटके मुसाफिर को !!
चांदनी रात बनकर मिला करो !!