233 + Best Zamana Shayari in Hindi | बेदर्द जमाना शायरी

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अपने दिल को सब्र दिलाए हुए है !!
हम जमाने के सितम खाये हुए है !!

चाहत का ताज़ बेवफा लोगों के नाम होगा !!
जमाने में प्यार मगर हमेशा बदनाम होगा !!

मिसाल उसकी क्या देगा ज़माना !!
जिसे खुदा भी खुद लाजवाब कहता है !!

ज़माना कान भरता है हमारे !!
हमें मालूम है, मासूम है तू !!

वो ज़माना भी तुम्हें याद है तुम कहते थे !!
दोस्त दुनिया में नहीं दाग से बेहतर अपना !!

न रुकी वक़्त की गर्दिश और न ज़माना बदला !!
पेड़ सुखा तो परीन्दो ने, ठिकाना बदला !!

ये अपनी कहानी ज़माने में “हसरत” !!
सभी को पता है, सभी को ख़बर है !!

बरसात की भीगी रातों में !!
फिर कोई सुहानी याद आई !!

कुछ अपना ज़माना याद आया
कुछ उनकी जवानी याद आई !!

यूँ ही नहीं मशहूर-ए-ज़माना मेरा क़ातिल !!
उस शख़्स को इस फ़न में महारत भी बहुत थी !!

मैने देखा है ज़माने को शराबें पी कर !!
दम निकल जाये अगर होश में आकर देखूँ !!

दुश्मनी एक पल में होतीं है !!
दोस्ती को जमाने लगते हैं !!

क्या खाक़ तरक्की की है ज़माने ने !!
मर्ज़े-इश्क़ तो अब भी ला-इलाज है !!

कहते हैं कि उम्मीद पे जीता है ज़माना !!
वो क्या करे जिसे कोई उम्मीद ही नहीं !!

भड़का रहे हैं आग लब-ए-नग़्मागार से हम !!
ख़ामोश क्या रहेंगे ज़माने के डर से !!

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Zamana Shayari in Hindi

तू जिसको कह रहा है पुराना लगा है मुझे !!
ये घर खरीदने में जमाना लगा मुझे !!

हमीं पे ख़त्म हैं जौर-ओ-सितम ज़माने के !!
हमारे बाद उसे किस की आरज़ू होगी !!

कर लो एक बार याद मुझको !!
हिचकियाँ आए भी ज़माना हो गया !!

लगाई है जो ये सीने में आग तुमने मेरे !!
अब वही आग ज़माने को लगा दूँ क्या मैं !!

चालाकियां ज़माने की देखा किये सहा किये !!
उम्र भर लेकिन वही सादा-दिल इंसान से रहे !!

हमारे नक्शे पा पे चलते-चलते !!
जमाना हमसे आगे निकल गया !!

देख कर दिल-कशी ज़माने की !!
आरज़ू है फ़रेब खाने की !!

चलो कि हम भी ज़माने के साथ चलते हैं !!
नहीं बदलता ज़माना तो हम बदलते हैं !!

हमने छोड़ा था ज़माना जिन्हें पाने के लिए !!
लो वही छोड़ चले हमको ज़माने के लिए !!

क्यूँकर हुआ है फ़ाश ज़माने पे क्या कहें !!
वो राज़-ए-दिल जो कह न सके राज़-दाँ से हम !!

यार मेरा बेवफाई को जीत गया !!
वो जुदा हुए मगर जमाना बीत गया !!

सच्चे दिल को जो भी सताता है !!
गुनाह कर जमाने में पछताता है !!

चिरागों के बदले मकाँ जल रहे है !!
नया है जमाना नई रौशनी !!

ये अपनी कहानी ज़माने में “हसरत” !!
सभी को पता है, सभी को ख़बर है !!

दुश्मनी एक पल में होतीं है !!
दोस्ती को जमाने लगते हैं !!

Zamana Shayari

क्या खाक़ तरक्की की है ज़माने ने !!
मर्ज़े-इश्क़ तो अब भी ला-इलाज है !!

मोहब्बत तेरा मेरा मसला था !!
ये ज़माना बीच में क्यूँ आ गया !!

खुदा अब किसानों को आजमाना छोड़ दे !!
चिलचिलाती धूप में फसलों को जलाना छोड़ दे !!

दिल धड़कने लगता है अब तो हवा के शोर से !!
एक वो ज़माना था टकराते थे तूफानों के साथ !!

क्या हुस्न ने समझा है क्या इश्क ने जाना है !!
हम खाक नशीनो की ठोकर में ज़माना है !!

शायरी में मीरो-ग़ालिब के ज़माने अब कहाँ !!
शोहरतें जब इतनी सस्ती हो अदब देखेगा कौन !!

मोहब्बत तेरा मेरा मसला था !!
ये ज़माना बीच में क्यूँ आ गया !!

अदाओं-वफाओ का ज़माना गया यारो !!
सिक्को की खनक बताती है रिश्ता कितना मजबूत है !!

बे-वफ़ाई का ज़माना है मगर आप “हफीज़” !!
नग़मा-ए-मेहर-ए-वफा सब को सुनाते रहिये !!

किस-किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम !!
तू मुझ से खफा है तो ज़माने के लिए आ !!

दिल की आवाज़ से आवाज़ मिलाते रहिये !!
जागते रहिये ज़माने को जगाते रहिए !!

इस बे-वफ़ाइयों के जमाने में दोस्तो !!
मेरी यही क्गता है कि मैं बेवफ़ा नही !!

एक ज़माना हुआ वैसे तो तुझ से बिछड़े हुए !!
तू मगर मुझे अभी अभी बीते पल की तरह याद है !!

खा कर ठोकर ज़माने की !!
फिर लौट आये मयखाने में !!

मुझे देख कर मेरे ग़म बोले !!
बड़ी देर लगा दी आने में !!

Zamana Bada Kharab Hai

मेरे साथ तू रहेगा तो ज़माना क्या कहेगा !!
मेरी इक यही तमन्ना तेरा इक यही बहाना !!

कौन है अपना कौन पराया क्या सोचें !!
छोड़ ज़माना तेरा भी है मेरा भी !!

ग़म-ए-ज़माना ने मजबूर कर दिया वर्ना !!
ये आरज़ू थी कि बस तेरी आरज़ू करते !!

छोड़ तो दी, रस्मे उल्फत ज़माने के लीए !!
मर मर के जिए है, हम दुआओं में उम्र ले कर !!

ये इश्क़ जिसके क़हर से डरता है ज़माना !!
कमबख्त मेरे सबर के टुकड़ों पे पला है !!

मिसाल उसकी क्या देगा ज़माना !!
जिसे खुदा भी खुद लाजवाब कहता है !!

ज़माना कान भरता है हमारे !!
हमें मालूम है, मासूम है तू !!

वो ज़माना भी तुम्हें याद है तुम कहते थे !!
दोस्त दुनिया में नहीं दाग से बेहतर अपना !!

न रुकी वक़्त की गर्दिश और न ज़माना बदला !!
पेड़ सुखा तो परीन्दो ने, ठिकाना बदला !!

ये अपनी कहानी ज़माने में “हसरत” !!
सभी को पता है, सभी को ख़बर है !!

बरसात की भीगी रातों में !!
फिर कोई सुहानी याद आई !!

कुछ अपना ज़माना याद आया
कुछ उनकी जवानी याद आई !!

यूँ ही नहीं मशहूर-ए-ज़माना मेरा क़ातिल !!
उस शख़्स को इस फ़न में महारत भी बहुत थी !!

मैने देखा है ज़माने को शराबें पी कर !!
दम निकल जाये अगर होश में आकर देखूँ !!

दुश्मनी एक पल में होतीं है !!
दोस्ती को जमाने लगते हैं !!

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Log Mujhse Jalte Hain

क्या खाक़ तरक्की की है ज़माने ने !!
मर्ज़े-इश्क़ तो अब भी ला-इलाज है !!

कहते हैं कि उम्मीद पे जीता है ज़माना !!
वो क्या करे जिसे कोई उम्मीद ही नहीं !!

हमने छोड़ा था ज़माना जिन्हें पाने के लिए !!
लो वही छोड़ चले हमको ज़माने के लिए !!

क्यूँकर हुआ है फ़ाश ज़माने पे क्या कहें !!
वो राज़-ए-दिल जो कह न सके राज़-दाँ से हम !!

नहीं बिकता हूँ मैं बाज़ार की मैली नुमाइश में !!
ज़माने में मुझे तो बस मेरे हक़दार पढ़ते हैं !!

खुद से जीतने की जिद है मुझे !!
खुद को ही हराना है !!

मै भीड़ नहीं हूँ दुनिया की !!
मेरे अन्दर एक ज़माना है !!

खोटे सिक्के जो अभी अभी चले हैं बाजार में !!
वो कमियां निकाल रहें हैं मेरे किरदार में !!

वो किताबो में दर्ज था ही नहीं !!
जो पड़ाया सबक जमाने ने !!

ये जमाना जल जायेगा किसी शोले की तरह !!
जब उसके हाथ में खनकेगा मेरे नाम का कंगन !!

मुझे उचाईओं पर देखकर हैरान हैं बहुत लोग !!
पर किसी ने मेरे पैरों के छाले नहीं देखे !!

रहते हैं अस-पास ही लेकिन साथ नहीं होते !!
कुछ लोग मुझसे जलते हैं बस ख़ाक नहीं होते !!

बे-मतलब की अच्छाई का सिल सिला ख़तम !!
अब जिस तरह की दुनिया उस तरह के हम !!

यहाँ सब कुछ बिकता है दोस्तो रहना जरा सभल के !!
बेचने वाले हवा भी बेच देते हैं गुब्बारों में डाल के !!

कभी तो अपने अन्दर भी कमियां ढूंढे !!
ज़माना मेरे गिरेवान में झाकता क्यों है !!

Zamane Ki Najar Mein

अपने हक़ के लिए जो कोई लड़ेगा !!
जमाना उसकी भी बुराई ही करेगा !!

जिंदगी को जो अपनी बदनाम कर गया !!
वो इस जमाने में मोहताज हो गया !!

शायद यहां किसी ने हमें ना पहचाना !!
प्यार में गुजारा है हमने एक जमाना !!

दर्द दिल में हमारे बड़ा बेहिसाब होता है !!
जमाना आशिकों को जब खराब कहता है !!

दिल तो नसीब का हकदार होता है !!
जमाना लेकिन कहां वफादार होता है !!

छोड़कर अंधविश्वास, तुम नई उड़ान लो !!
जमाने के असली रूप को पहचान लो !!

वक्त हाथों से निकल जाता है !!
और जमाना यूं ही बदल जाता है !!

वो किताबो में दर्ज था ही नहीं !!
जो पड़ाया सबक जमाने ने !!

कभी तो अपने अन्दर भी कमियां ढूढ़े !!
ज़माना मेरे गिरेबान में झाँकता क्यूँ हैं !!

ज़माना तो बड़े शौक से सुन रहा था !!
हम ही रो पड़े दास्ताँ कहते कहते !! !!

अपने किरदार पर डालकर परदा !!
हरकोई कह रहा है जमाना ख़राब है !!

बहुत कुछ सिखाया है जमाने ने !!
मैं कैसे कह दूं जमाना खराब है !!

मैं अपना रक़्स-ए-जाम तुझे भी दिखाऊँगा !!
ऐ गर्दिश-ए-ज़माना मेरे दिन अगर फिरे !!

उँगलियाँ मेरी वफ़ा पर न उठाना लोगो !!
जिसको शक हो वो मुझे निभा कर देखे !!

सच्चाई थी पहले के लोगों की जुबानों में !!
सोने के थे दरवाजे मिट्टी के मकानों में !!

Zamana Shayari 2 Lines

खोटे सिक्के जो अभी अभी चले हैं बाजार में !!
वो कमियां निकाल रहें हैं मेरे किरदार में !!

कुछ तुम ले गए, कुछ जमाना !!
इतना सुकून, हम लाते भी कहाँ से !!

जब किसी का भी दिल !!
खुद के दर्द में खोता है !!
मशवरे देता है ये जमाना !!
बड़ा ही बेदर्द होता है !!

वो दिल का आलम !!
वो किस्सा पुराना !!
याद आया हमें भी !!
प्यार का वो जमाना !!

सच्चे दिल की बात को !!
हर कोई है भूल जाता !!
बेवफा लोगों को मगर !!
जमाना है याद रखता !!

जिंदगी हमेशा सबको !!
उसकी नसीहत देती है !!
जमाने की मगर अपनी !!
अलग हकीकत होती है !!

मुकद्दर में क्या लिखा !!
होगा, कोई ना जाने !!
जमाने की रिवायतों को !!
कोई कैसे सच माने !!

प्यार की ही जीत होगी !!
इस बात को हमने माना !!
मगर न जाने कितनी !!
ठोकरे देगा ये जमाना !!

मेरे दिल जैसा कोई दिल !!
बेगाना नहीं मिलता !!
जमाने में आशिकों को !!
ठिकाना नहीं मिलता !!

ज़माना चाहता है क्यों !!
मेरी फ़ितरत बदल देना !!
इसे क्यों ज़िद है !!
आख़िर, फूल को पत्थर बनाने की !!

औकात नहीं थी ज़माने की !!
जो हमारी कीमत लगा सके !!
पर कमबख्त इश्क में !!
क्या गिरे मुफ्त में नीलाम हो गये !!

वही ज़मीन है !!
वही आसमान वही हम तुम !!
सवाल यह है !!
ज़माना बदल गया कैसे !!

कौन हमारे दर्द को समझा !!
किसने गम मे साथ दिया !!
कहने को साथ हमारे तुम !!
क्या एक ज़माना था !!

फोन से करने लगे हैं !!
मुलाकात आजकल के आशिक !!
वो गालों से जुल्फों को !!
हटाने का जमाना अब नहीं रहा !!

यहाँ सब कुछ बिकता है दोस्तो !!
रहना जरा सभल के !!
बेचने वाले हवा भी बेच देते हैं !!
गुब्बारों में डाल के !!

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Zamana Shayari Urdu

सुन पगली जब तू चलती है !!
तो ज़माना रूक जाता है !!
लेकिन मैं जब चलता हूं !!
तो ज़माना झुक जाता है !!

एतराज है ज़माने को जो !!
लबों पे मुस्कुराहट आ जाये !!
मुस्कुराये ज़माना जो !!
निगाहों में गम के बादल छा जाएं !!

ऊँची इमारतों से !!
मकान मेरा घिर गया !!
कुछ लोग मेरे !!
हिस्से का सूरज भी खा गए !!

थोड़ा हट के चलता हूँ !!
ज़माने की रिवायत से !!
कि जिनपे मैं बोझ डालूँ !!
वो कंधा याद रखता हूँ !!

रहते हैं अस-पास ही !!
लेकिन साथ नहीं होते !!
कुछ लोग मुझसे जलते हैं !!
बस ख़ाक नहीं होते !!

नीम का पेड़ था बरसात थी !!
और झूला था !!
गांव में गुज़रा ज़माना !!
भी ग़ज़ल जैसा था !!

निकाल देते हैं औरो मै ऐब !!
जैसे ख़ुद नैकियो के नवाब है !!
अपने गुनाह पर डालकर परदा !!
कहते है जमाना खराब है !!

सारी फितरत तो !!
नकाबों में छुपा रखी थी !!
सिर्फ तस्वीर उजालों में लगा रखी थी !!

सच को मैंने सच कहा !!
जब कह दिया तो कह दिया !!
अब ज़माने की नज़र में !!
ये हिमाकत है तो है !!

परवाह ना करो चाहे !!
सारा जमाना खिलाफ हो !!
चलो उस रास्ते पर जो !!
सच्चा और साफ हो !!

मासूम मोहब्बत का !!
बस इतना फसाना है !!
कागज़ की हवेली है !!
बारिश का ज़माना है !!

क्या लूटेगा जमाना खुशियों को हमारी !!
हम तो खुद अपनी खुशियाँ !!
दूसरों पर लुटा कर जीते है !!

सिर्फ तूने ही मुझे !!
कभी अपना न समझा !!
जमाना तो आज भी !!
मुझे तेरा दीवाना कहता है !!

क़र्ज़ ग़म का चुकाना पड़ा है !!
रो के भी मुस्कराना पड़ा है !!
सच को सच कह दिया इसी पर !!
मेरे पीछे ज़माना पड़ा है !!

मेरा कमाल-ए-शेर !!
बस इतना है ऐ “जिगर” !!
वो मुझ पे छा गए !!
मैं ज़माने पे छा गया !!

Shayari on Zamana

मैं अपनी तारीफ तो खुद ही करता हूं !!
क्योंकि मेरी बुराई करने के लिए !!
तो पूरा जमाना तैयार बैठा है !!

चीखें भी यहाँ कोई गौर !!
से सुनता नहीं फ़राज़ !!
अरे किस शहर में !!
तुम शेर सुनाने चले आये !!

रूठा हुआ है !!
मुझसे इस बात पर ज़माना !!
शामिल नहीं है !!
मेरी फ़ितरत में सर झुकाना !!

मुझे उचाईओं पर !!
देखकर हैरान हैं बहुत लोग !!
पर किसी ने मेरे पैरों के छाले नहीं देखे !!

जाने क्या मुझसे ज़माना चाहता है !!
मेरा दिल तोड़कर मुझे हँसाना चाहता है !!
जाने क्या बात है मेरे चेहरे में !!
हर शख्स मुझे अजमाना चाहता है !!

हमारा जिक्र भी अब जुर्म हो गया है वहाँ !!
दिनों की बात है महफ़िल की आबरू हम थे !!
ख्याल था के ये पथराव रोक दे चल कर !!
जो होश आया तो देखा लहू लहू हम थे !!

भूल कर भी अपने दिल !!
की बात किसी से मत कहना !!
यहाँ कागज भी जरा सी !!
देर में अखबार बन जाता है !!

सबसे अलग सबसे न्यारे हो आप !!
तारीफ कभी पुरी ना हो इतने प्यारे हो आप !!
आज पता चला कि जमाना क्यों जलता है हमसे !!
क्यों कि दोस्त तो आखिर हमारे हो आप !!

खामोश बैठे तो लोग कहते है !!
उदासी अच्छी नहीं !!
हंस ले तो लोग !!
मुस्कराने की वजह पूछ लेते हैं !!

आज आई बारिश तो !!
याद आया वो जमाना !!
वो तेरा छत पे रहना !!
और मेरा सडको पे नहाना !!

बे-मतलब की अच्छाई !!
का सिल सिला ख़तम !!
अब जिस तरह की !!
दुनिया उस तरह के हम !!

दुनिया ये मोहब्बत को मोहब्बत नहीं देती !!
इनाम तो बड़ी चीज़ है कीमत नहीं देती !!
देने को मैं भी दे सकता हूँ गाली उसे !!
मगर मेरी तहजीब मुझे इज़ाज़त नहीं देती !!

ये जमाना जल जायेगा !!
किसी शोले की तरह !!
जब उसके हाथ में खनकेगा !!
मेरे नाम का कंगन !!

सच बिकता है झूठ बिकता है !!
बिकती है हर कहानी !!
तीनों लोक में फैला फिर भी !!
बिकता है बोतल में पानी !!

बेवफा दुनिया में कौन !!
सारी ज़िन्दगी साथ देगा तेरा !!
लोग तो दफना कर भूल जाते हैं !!
के कब्र कौन सी थी !!

Bewafa Zamana Shayari

पहले तराशा उस ने !!
मेरा वजूद शीशे से “फ़राज़” !!
फिर ज़माने भर के हाथों में !!
पत्थर थमा दिए !!

हम से खेलती रही दुनिया !!
तास के पत्तों की तरह !!
जिसने जीता उसने भी फेका !!
जिसने हारा उसने भी फेंका !!

उन से एक पल में !!
कैसे बिछड़ जाए हम !!
जिनसे मिलने मैं !!
शायद ज़माने लगे !!

बड़ा जालिम जमाना है !!
यहां हर शख्स सयाना है !!
यह मैं नहीं कहता ये !!
भी कहता जमाना है !!

ज़माना एक दिन मुझको !!
इन्हीं लफ़्ज़ों में ढूँढेगा !!
वो हर एहसास जो !!
लफ़्ज़ों में ढाला छोड़ जाऊँगा !!

तुम फिर उसी अदा से !!
अंगड़ाई लेके हँस दो !!
आ जाएगा पलट कर !!
गुज़रा हुआ ज़माना !!

जमाना हो गया है !!
देखो मेरी चाहत नही बदली !!
उसकी जिद नही बदली !!
मेरी आदत नही बदली !!

रुके तो गर्दिशें !!
उसका तवाफ़ करती हैं !!
चले तो उसको !!
ज़माने ठहर के देखते हैं !!

परवाह नहीं चाहे !!
जमाना कितना भी खिलाफ हो !!
चलूँगा उसी राह पर !!
जो सीधी और साफ हो !!

बस एक ख़ुद से ही !!
अपनी नहीं बनी वरना !!
ज़माने भर से !!
हमेशा बना के रखतें हैं !!

नहीं बिकता हूँ !!
मैं बाज़ार की मैली नुमाइश में !!
ज़माने में मुझे तो !!
बस मेरे हक़दार पढ़ते हैं !!

खुद से जीतने की जिद है मुझे !!
खुद को ही हराना है !!
मै भीड़ नहीं हूँ दुनिया की !!
मेरे अन्दर एक ज़माना है !!

ज़माना याद करे !!
या सबा करे ख़ामोश !!
हम इक चराग़-ए-मोहब्बत !!
जलाए जाते हैं !!

बदला हुआ वक़्त है !!
ज़ालिम ज़माना है !!
यहां मतलबी रिश्ते है !!
फिर भी निभाना है !!

बरसात की भीगी रातों में !!
फिर कोई सुहानी याद आई !!
कुछ अपना ज़माना याद आया !!
कुछ उनकी जवानी याद आई !!

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Shayari on Zalim Zamana

मैने देखा है !!
ज़माने को शराबें पी कर !!
दम निकल जाये !!
अगर होश में आकर देखूँ !!

कहते हैं !!
कि उम्मीद पे जीता है ज़माना !!
वो क्या करे जिसे कोई उम्मीद ही नहीं !!

ऊँचे आसमान से मेरी ज़मीन देख लो !!
तुम ख्वाब आज कोई हसीं देख लो !!
अगर आज़माना हैं ऐतबार को मेरे तो !!
एक झूठ बोलो और मेरा यकीन देख लो !!

छोड़ दें कोशिशें इंसानों को पहचानने की !!
यहाँ जरूरतों के हिसाब से बदलते नकाब हैं !!
अपने गुनाहों पर सौ पर्दे डालकर !!
हर शख्स कहता है, जमाना बड़ा खराब हैं !!

दुनिया में कहाँ वफ़ा का सिला देते हैं लोग !!
अब तो मोहब्बत की भी सजा देते हैं लोग !!
पहले सजाते हैं दिलो में चाहतों के ख्वाब !!
फिर ऐतबार को आग लगा देते हैं लोग !!

दुनिया ये मोहब्बत को मोहब्बत नहीं देती !!
इनाम तो बड़ी चीज़ है कीमत नहीं देती !!
देने को मैं भी दे सकता हूँ गाली उसे !!
मगर मेरी तहजीब मुझे इज़ाज़त नहीं देती !!

किसी के दिल में बसना कुछ बुरा तो नहीं !!
किसी को दिल में बसाना कोई खता तो नहीं !!
गुनाह हो यह ज़माने की नज़र में तो क्या !!
ज़माने वाले कोई खुदा तो नहीं !!

हमारा जिक्र भी अब जुर्म हो गया है वहाँ !!
दिनों की बात है महफ़िल की आबरू हम थे !!
ख्याल था के ये पथराव रोक दे चल कर !!
जो होश आया तो देखा लहू लहू हम थे !!

जाने क्या मुझसे ज़माना चाहता है !!
मेरा दिल तोड़कर मुझे हँसाना चाहता है !!
जाने क्या बात है मेरे चेहरे में !!
हर शख्स मुझे अजमाना चाहता है !!

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